Thursday, January 15, 2015

"अब कहाँ मिलते हैं ''दोस्त'' वफा निभाने वाले "


अब कहाँ मिलते हैं "दोस्त" वफा निभाने वाले,
सब ने सीखें हैं "अन्दाज" जमाने वाले !

दिल जलाओ या "दीये" आंखों की दहलीज पर,
"वक्त" से पहले तो आते नहीं आने वाले !

 अश्क बन कर मैं तेरी "निगाहों" में आउंगा,
ऐ मुझे अपनी "निगाहों" से गिराने वाले !

 वक्त बदलता है तो "अंगुली" उठाते हो मुझ पर,
कल तलक हक में थे मेरे "हाथ" उठाने वाले !

 वक्त हर जख्म का "मरहम" तो नहीं बन सकता ना "दोस्त"
 दर्द कुछ होते हैं "उम्र" भर रुलाने वाले !!

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